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आज का शब्द: कालरात्रि और दिनेश कुमार शुक्ल की कविता- जब भी जा पाऊँगा मैं वहाँ

आज का शब्द
                
                                                         
                            'हिंदी हैं हम' शब्द श्रृंखला में आज का शब्द है- कालरात्रि, जिसका अर्थ है- देवी दुर्गा, प्रलय की रात जिसमें सारी सृष्टि नष्ट हो जाती है और जिसे ब्रह्मा की रात्रि भी कहते हैं, बहुत अँधेरी और भयावनी रात। प्रस्तुत है दिनेश कुमार शुक्ल की कविता- जब भी जा पाऊँगा मैं वहाँ
                                                                 
                            

जब भी जा पाऊँगा
मैं वहाँ
फिर सजल हो उठेंगी नदियाँ।
स्निग्ध हो जायेगी जेठ की धूप
हरे रस में इस कदर सराबोर हो जाएंगे
बबूल के कांटे
कि चुभना बन्द कर देंगे

बुखार में तपते बच्चे की
आँखों में कांपती कालरात्रि
खिल उठेगी
परियों की शरद पूर्णिमा में,
फिर जुगाली करने लगेगी
युगों से स्तब्ध खड़ी गाय
जब भी पहुँच पाऊँगा
मैं वहाँ

अपनी भू-लुंठित पताका
फिर से उठा लेगा इतिहास,
लबालब, अर्थों से भर जाएंगे शब्द,
संवाद की लहरों से
सनसना उठेगी फिर भाषा की झील
जहाँ पद्मावती सखियों के साथ
फिर से करेगी जल विहार आगे पढ़ें

एक वर्ष पहले

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